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कमतर क्यों आंके जाते हैं नक्सली हमले?

गुस्ताखी माफ
गुस्ताखी माफ
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पश्चिम बंगाल में अब तक के सबसे बड़े हमले में २४ जवानों की मौत…
पुणे की जर्मन बेकरी में शनिवार शाम हुए धमाके ने नौ लोगों को मौत की नींद सुला दिया। यह आतंकी घटना थी, इसलिए न केवल देश के सभी राजनीतिक दलों ने एक स्वर में इसकी निंदा की, बल्कि इसकी गूंज दुनियाभर में सुनाई दी। अमेरिका से लेकर आस्ट्रेलिया तक ने इसकी निंदा की। यह शुभ संकेत भी है, भारत में होने वाली बड़ी आतंकी घटना के खिलाफ अब दुनिया भर से एक आवाज सुनाई देने लगी है। वक्त आ गया है कि इस आवाज को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कुछ बड़े देश मिलकर एक ठोस पहल करें।
फिलहाल मैं आपका ध्यान पुणे की आतंकी घटना के मात्र २२ घंटे बाद पश्चिम बंगाल में अद्र्धसैनिक बलों पर हुए अब तक के सबसे बड़े नक्सली हमले की ओर दिलाना चाहता हूं। खबरों के मुताबिक नक्सलियों ने सोमवार शाम साढ़े पांच बजे पश्चिमी मिदनापुर जिले के सिल्दा में १४ ईस्टर्न फ्रंटियर रायफल्स (ईएफआर) के कैंप पर हमला कर २४ जवानों को मार डाला। नक्सलियों ने बारूदी सुरंगों के धमाके से कैंप को तहस-नहस कर दिया, वहां आग लगा दी और जवानों के हथियार लूट लिए। कुछ जवानों को गोली मारी गई,, जबकि कुछ को जिंदा जला दिया गया। देर रात जिले के डीएम ने बताया कि अत्याधुनिक हथियारों से लैस सौ से अधिक नक्सली बाइक और कारों से सिल्दा कैंप पहुंचे। हमले के वक्त कैंप में ५१ जवान व अफसर खाना बनाने और अन्य काम में व्यस्त थे। शुरू में जवानों ने जवाबी गोलीबारी की, लेकिन बाद में नक्सली भारी पड़ गए। नक्सली नेता किशनजी ने हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा है कि यह केंद्र सरकार के ऑपरेशन ग्रीन हंट का जवाब है। किशनजी ने दावा किया हमले में कम से कम ३५ जवान मारे गए और एके-४७, एसएलआर जैसे अत्याधुनिक हथियार लूटे गए।

अहम सवाल यह है कि ऐसे हमलों को हम कब तक यह कहते हुए नजरअंदाज करते रहेंगे कि नक्सली हमारे अपने हैं इसलिए उनके साथ नरमी से पेश आने की जरूरत है? क्या हम अपने देश के अंदर तालिबान का दूसरा रूप नहीं पाल रहे? अभी गिने चुने इलाकों में फैले नक्सली प्रशासन पर भारी पड़ रहे हैं, जब उनके पांव दूर-दूर तक जम जाएंगे तो उन्हें उखाड़ पाना और भी मुश्किल हो जाएगा। गांवों में यह कहावत आम है कि जब अपने पैर में मवाद आ जाए तो उसे काट देते हैं। नक्सलियों की ताजा हरकत देखने-सुनने के बाद मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं है कि हमारे कुछ अपने अब हमारे नहीं रह गए हैं। समय रहते उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचा देना चाहिए, वरना देर हो जाएगी।

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